दीया जलाया हसरत का जब मौत तमाशा देख रहा था ,
फद्फद्य लौ एक बार बस खत्म हो गई राम कहानी।
नज़र बदल गयें, नज़ारें बदल गयें,
दिल दुनिया दवा दर्द और सितारें बदल गयें
देखा उन्होंने इस कदर की ,
चहुँ और के दिन हमारें बदल गयें।
हवाओ में खुशबु थी, खुन्नश थी मौत से,
बैर होती हैं औरत को अपनी सास , ननद और सौत से ।
दीया जलाये उम्मीद का बैठा रहा ,
रस्सी जल गई पर यू ही एठा रहा ।
दिखावे पर तुम क्यों जाते हो दोस्त,
मोटी तो हरदम गहरे पानी पैठा रहा।
1 टिप्पणी:
सही है लगे रहें....
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