मंगलवार, 30 सितंबर 2008

ईद एवं नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं


ईद एवं नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं । सभी सुधि पाठक एवं ब्लॉगर भाइयों के घर शान्ति, शक्ति, सम्पति स्वरुप, सयम सादगी, सफलता, समृधि, संस्कार, सम्मान, स्वस्थ्य सरसवती आप सब के साथ हो। एक बार फ़िर नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें।

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

क्यों उठाते हैं कलाकार कष्ट

छोटे शहर की संस्था यवनिका की प्रस्तुति भिखारी ठाकुर का बिदेशिया

यूँ तो कलाकारों को हमेशा ही कष्ट भोगना पड़ता है, और कलाकार कलाकार ही होता हैं जो समाज सुधर करने चलता है और समाज इस कदर प्रताडित करता हैउसे अपने कलाकार होने से घृणा होने लगती है। मैं भी एक कलाकार हू। पहले था नही अब बना हू । रंग मंच पर एक दो ही नाटक कियाहै और कलाकारों के बारे में जान कर मन में काफी दुःख होता। किस कदर कलाकारों की जिन्दगी संघर्ष से सुरु होकर संघर्ष में ही ख़तम हो जाती है।घर और समाज इस से अछूता नही हैं। घर में परिवार वाले कहते हैं की देख नचनिया बजनिया बनी इ इ इ । समाज में लोग कहते हैं की काम धाम नइखे कमाए के आच्छा धंधा अपना लेले बा ।इतना सब कुछ होने के बाद भी कलाकार नीलकंठ के सामान सब कुछ पी जाता है और समाज को उसकी कमी को दिखता हैं । समाज देखता हैं और कुछ देर बाद भूल जाता है । यदि प्रस्तुति आच्छी हुई तो थोडी देर वाहवाह उसके बाद ताना देना शुरू कर देते हैं लोग।कलाकारों के अंदर कोई नही देखता की उसके अन्दर भी एक आदमियत है उसके अन्दर भावना है। छोटे शहरो में तो काफी ख़राब स्थिति है। रंगमंच पर अगर कुछ करना है तो कोई कलाकारों को मदद को आगे नही आता । ५०० रु० का डौगी मुर्गा खा सकता है पर ५० रु० नाटक करने को लोग नही दे सकते।काफी कुछ सहना पड़ता है फ़िर भी मुस्कुराना पड़ता है। अभी मात्र चार सालों से ही इस क्षेत्र में हूँ इस दौरान कुछ आच्छा अनुभव नही रहा है मुझे । कभी कभी तो इतनी प्रशंशा मिलती है की मन में काफी जोश भर जाता है । जिसके बदौलत आज भी रंगमंच पर काफी कुछ करने मन होता है पर सबसे बड़ी समस्या वही होती ही धन की जो एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार से आने वाला कलाकार कभी पुरा नही कर सकता है। हर कलाकार की कमजोरी होती है रंगमंच । मैं क्या लिखू समझ में नही आ रहा है । फ़िर भी कलाकार होने का दंश झेलना ही पड़ेगा मुझे । सारे रंगकर्मियों को सादर प्रणाम करते हुए दिल से लिखे इस पोस्ट को अब समाप्त कर रहा हू । आप सबों का प्यार, दुलार , स्नेह , आशीर्वाद मुझे इस क्षेत्र से जोड़े रख सकता हैं कृपया हिम्मत दे। dhanyawad।

शनिवार, 6 सितंबर 2008

मातम मौत का .....?


मातम है मौत का , अफ्शोश सभी हैं जता रहें है ,
कितना बुरा हुआ है , मिडिया वाले बता रहें है
डूबा है घर जिनका , पूछो हालत उनकी
कितनी असीम धैर्य है उनमे , वो सबको दिखा रहे है ।
हे भगवन शक्ति दो उनको इस बिपदा से लड़ने की
हम सब भी हिम्मत दे उनको बात नही है डरने की
महाविनाश की इस बेला में भगवन भी कितना सता रहे है
बाढ़ पीडितों को न्यूज़ में देख कर आंदोलित हुए मन का भावः ...........