नाहक परेशां क्यों होता हैं मन
उम्मीद पर दुनिया टिकी हैं
देख निचे वालों को
संभाल अपने मन को
दरिद्र सिर्फ़ तू नहीं हैं
धन वाले भी गरीब हैं
निर्धन भी धनवान
चाह न झूठी शानो शौकत
कभी भी आ सकती हैं आफत
पलक झुका कर उठाने में
बदल सकती हैं भी दुनिया भी
नालायक सिर्फ़ मैं ही नहीं हू
नजर घुमा कर के तो देखो
नहीं दिखेगा अपना कोई
राम रची रखा वही होई
फ़िर क्यों कष्ट देता हैं तन को
देख निचे वाले को
और अब संभाल अपने मन को ।
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