गुरुवार, 28 अगस्त 2008

आरा यानि भोजपुर की एतिहासिकता

बिदेशिया की प्रस्तुति भोजपुर की एक संस्था यवनिका द्वारा
भोजपुरी के शेकश्पियर भिखारी ठाकुर

पहले मैं क्षमा चाहता हू देर से अपडेट होने के लिए ..... मै फ़िर प्रस्तुत हू आरा यानि भोजपुर का एतिहासिक परिचय लेकर। कहा जाता हैं की आरा का नामांकरण में राजा मकरध्वज द्वारा अपने पुत्र को दान में देकर अपने पुत्र को आरा (लकड़ी चीरने का औजार ) से चीर दिया था। उसी समय से इस शहर को आरा के नाम से जाना जाता है । दुसिरी किवदंती है की माँ अरण्य देवी का यहाँ बसेरा होने के कारन भी इसका नाम आरा पडा। आज का आरा पुराने शाहाबाद जिला का एक अंग हैं जो आज भोजपुर के नाम से प्रख्यात है। पुराने शाहाबाद जनपद को अगर देखे तो आज के भोजपुर, बक्सर, भभुआ, रोहतास को मिलाकर बना था शाहाबाद। आरा के पशिचम में करीसाथ गाँव हैं जहाँआज भी बाणासुर पोखराहै वही बाणासुर जिसकी बेटी उषा से श्री कृष्ण के पोता अनिरुध से विवाह हुआ था। कारीसाथ गाँव जैन धर्माव्लाम्बिओं का तीर्थ स्थान आजभी है। आराके उत्तर में बहने वाली गंगी पहले की गंगा ही है। जो आज आरा से थोड़ा उत्तर दिशा की ओर होकर प्रवाहित हो रही है। आरा के निकट ही एक छोटा सा गाँव हैं बिन्दगावा। यही वो गाँव हैं जहाँ संस्कृतके महाकवि बाणभट्ट जनम लिए थे। जिनकी रचना हर्षचरित कादम्बरी आज भी अपने आप में अनोखा है। इस धरती पर संत कवि तुलसी का पदार्पण हुआ है।

angaregi shashan में आरा का bishesh mahatav रहा है। जार्ज पंचम का जब आरा darbar हुआ था तो उनके लिए ramna maidan से sate एक charch का nirman karaya गया था ।
सन १८५७ में जब देश के सभी जगहों पर स्वंत्रता संग्राम का बिगुल फुका गया था तब बीर बकुडा बाबु कुंवर सिंह ने यही से नेतृत्व करके अंगरेजी हुकूमत के खिलाफ जंग का एलान किया। बाबु कुंवर सिंह आरा से २५ किलोमीटर पश्चिम जगदीश पुर के रहनेवाले थे। कहा जाता हैं की कुंवर सिंह ने आरा से जगदीशपुर सुरक्षित जाने के लिए एक सुरंग का निर्माण करवाया था। आज भी यह सुरंग मृत अवस्था में महाराजा कालेज में बिधामान है आरा का बाबु बाज़ार कुंवर सिंह के स्मृती का श्रेष्ट उधाहरण हैं। आरा के साहित्यिक गतिविधियों के क्या कहने? दिल्ली , इलाहबाद, काशी में भी यहाँ की तूती बोलती थी और हैं। यहाँ के कथाकार लेखक , साहित्यासृजक पहले और आज आपनी और अपनी इस भूमि की पहचान रास्ट्रीय स्तर पर बना चुनके हैं। यहाँ के साहित्यिक लाल शिव नन्दन सहाय , आचार्य शिव पूजन सहाय, राजा राधिकारमण , हवालदार त्रिपाठी , सकल देव नारायण शर्मा को कौन हिन्दी पाठक नहीं जनता होगा। भोजपुर लोक कथा और लोक गायन का एक प्रमुख केन्द्र रहा हैं। भोजपुरी के शेकश्पियर भिखारी ठाकुर को भोजपुरी भाषा- भाषी क्षेत्र का कौन नही जनता है। जिनकी रचना भोजपुरी भाइयों के नस-नस में बसी हुई हैं। बिदेशिया , गबरघिचोर बेटी-बचवा अनेक नाटको के मध्यम से जन जाग्रति फैलाने का काम किया हैं. महादेव सिंह को कौन भुला सकता है। जिन्होंने सोरठी ब्रिजभार , नयाकावा और लोरिकायन को रच कर भोजपुरी को नई दिशा दी हैं। महेंद्र मिशिर भोजपुरी पुरबी का एक अमर नाम हैं ।

पढ़ कर कृपया हौशलाअफजाई करें ........ कैसी रही ये आरा यानि भोजपुर के बारे में कुछ बिशेष .....



मंगलवार, 19 अगस्त 2008

आरा पर एक नज़र

एक दिन की बात हैं मैं चूँकि ब्लॉग पर ओफिसिअल कामसे ब्यस्त रहने के कारन ज्यादा अपडेट नहीं रह पता हू । मेरे मन में अपने ब्लॉग पर कुछ लिखने का मन बना रहा था लेकिन समझ में नहीं आ रहा था की किस बिषय पर लिखू । इसी क्रम में मेरी बात दीदी से हुई दीदी बताई की तुम क्यों नहीं अपनी शहर के बारे में कुछ लिखते हो । बंडमरू का एक प्रयास हैं अपने शहर आरा पर कुछ लिखने का । अच्छा लगे तो कृपया हौसलाअफजाई करें ।

तो शुरू करतें हैं...........

अगर प्रुराने ज़माने के ग्राम देवताओं और नगर देवताओं की मान्यातएं आज भी मान्य होती तो आरा के बारे में में इतना तो कहूँगा की इसको बनाने वाले जरूर कोई रोमांटिक कलाकार रहें होंगे जो इसके दामन में रंग बिरंगे डोरे डालें । जहाँ सुबह सुनहरी तो शाम मलयजी होती हैं । इसकी रंगिनिया, इसकी हरियाली , ऊँचे ऊँचे भवन , मनभावन उद्यान , एतिहासिकता से परिपूर्ण , धरम में आस्था क्या कुछ नहीं हैं इस छोटे से शहर में । एक से बढ़कर एक वीर इसके दामन में भरे पड़े हैं । जहाँ की भाषा भोजपुरी हैं जहाँ के रग-रग में देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा पड़ा हैं । सभ्यता संस्कृति की अपनी अलग पहचान लिए आरा बिहार के भोजपुर जिला का हृदय अस्थाली है । भारत का मुख्य पहचान अनेकता में एकता यहाँ की बिशेषता हैं । यहाँ की उर्वरता इतनी हैं की अनेक नेता कवि स्वतंत्रता सेनानी न जाने कितनो ने आरा की पहचान विश्व पटल बनाईं हैं ।
अभी तो बहुत कुछ बाकि हैं बहुत जल्द मिलते हैं ........................

बुधवार, 6 अगस्त 2008

सास के मायके सातो धाम

अभी हाल ही में मैं अपने ममेरी बहन के शादी में गया था। शादी में घर में चारो तरफ़ गहमागहमी थे। घर में औरतों का जमवाडा लगा था। मैं भी ब्यस्त था। घर के आंगन में औरतों का जो जमवाडा था उसमे अपनी सास के ऊपर चर्चा परिचर्चा छिड़ा हुआ था। अधिकंस्तः शादी शुदा महिलाएं अगर जमवाडा लगाती हैं तो अपने ससुराल के और सासु माँ के बारे में ही बात करती हैं। बात चित के क्रम में मैंने सुना की औरतों को अगर अपने सासु माँ के मायका यानि अपने पति के मामा गाँव जाकर उस घर का पानी पिने का मौका मिले तो पानी पिने मात्र से सारे धाम जाने के बराबर पुण्य मिलता हैं। गाँव की महिलाएं अन्धविश्वास और आस्था की केन्द्र होती ही हैं। ऐसा मानना सभी लोगों का हो सकता हैं। इसको अन्धविश्वास , धर्मान्धता या आस्था भी कह सकतें हैं। sas बहु के झगडे और सास बहु को लेकर जो अवाधारानाएं हैं वो तो जग जाहिर है लेकिन मुझे गर्व होता हैं अपने पूर्वजो पर जो इतने दुर्दारसी थे की क्या कहने। मैं उनके दूरदर्शिता को सलाम करता हू । वो अपनी दूरदर्शिता के बल पर इस तरह का एक कोसिस कर गयें जो सास बहु के बिच के झगडे को पाटने का महत्वपूर्ण कड़ी हैं ।

सोमवार, 4 अगस्त 2008

मन्दिर में मानवता शर्मशार

आज सुबह-२ जब मैंने अख़बार खोला तो अख़बार के प्रथम पृष्ट पर मानवता को शर्मशार क्र देने वाली घटना ने मुझे आंदोलित कर के रख दिया। सोचा क्यों न मन की भावनाओ को लिखा जाय। घटना बिहार के गोपाल गंज जिले की हैं। वहां पर रुपये ले करभाग रहे चोर को पब्लिक ने कानून के रखवालो के सामने इतनी बुरी तरह से पीटा की वो अधमरा हो गया। वो भी मन्दिर के खम्भे से बाँध कर । मानवों की मानवता इस कदर हो जायेगी ये सोच कर मन आंदोलित हो गया। ख़बरों के मुताबिक एक आदमी सिवान से गोपालगंज किसी काम से २०००० रुपए लेकर आया था दो चोर बैग को छीन कर भागने लगें बैग मालिक द्वारा शोर मचाने पर भाग रहे चोरों को पकड़ने के लिए कुछ आदमी दौडे एक चोर को पकड़ लिया और पास के मन्दिर के खम्भों में बाँध कर मरने लगें । वहीँ पुलिस मूकदर्शक बनी देखती रही। उस अधमरे चोर को जब पब्लिक ने छोड़ दिया तो पुलिस उसको थाने में ले कर आई। रुपए लेकर चोर भाग चुका था। पकड़ा गया चोर अपनी किस्मत को कोष ही रहा होगा । कानून पुलिस क्या भीड़ के सामने लाचार थी या पुलिस द्वारा चोर को सुधरने का नायब तरीका था। खैर जो भी हो कानून के रक्षको के सामने मन्दिर में मानवता तो शर्मशार हो ही गई।

फ़िर वही बात हो गई ''खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोडा चार आना''