सोमवार, 21 अप्रैल 2008

दो टूक बातें

दीया जलाया हसरत का जब मौत तमाशा देख रहा था ,
फद्फद्य लौ एक बार बस खत्म हो गई राम कहानी।

नज़र बदल गयें, नज़ारें बदल गयें,
दिल दुनिया दवा दर्द और सितारें बदल गयें
देखा उन्होंने इस कदर की ,
चहुँ और के दिन हमारें बदल गयें।

हवाओ में खुशबु थी, खुन्नश थी मौत से,
बैर होती हैं औरत को अपनी सास , ननद और सौत से ।

दीया जलाये उम्मीद का बैठा रहा ,
रस्सी जल गई पर यू ही एठा रहा ।
दिखावे पर तुम क्यों जाते हो दोस्त,
मोटी तो हरदम गहरे पानी पैठा रहा।

1 टिप्पणी:

VIMAL VERMA ने कहा…

सही है लगे रहें....