थक कर चूर हो चूका अब बचपन
मल कर चाय कि प्याली
सुख को जिसने देखा नही
कुदरत ने जिसके किस्मत में
दुःख दर्द गम ही डाली
फुटा नसीब उस वक़त बचपन का
पैदा हुआ जब इस धरा पर
दूध भी नही मिल सका जिसको
कोई क्या जाने इस बात को, कि
हुआ बड़ा, खा कर जूठन थाली , दुःख दर्द ..................
सड़क चौराहे पर कचरा चुन कर
करता कोशिश भूख मारने का
न कोई हसरत न कोई सपना
अपना नही इस जग में कोई
मर गया हैं जब बचपन समाज में
सुन समाज कि भद्दी गाली , कुदरत ने जिसके ...........
मल कर चाय कि प्याली
सुख को जिसने देखा नही
कुदरत ने जिसके किस्मत में
दुःख दर्द गम ही डाली
फुटा नसीब उस वक़त बचपन का
पैदा हुआ जब इस धरा पर
दूध भी नही मिल सका जिसको
कोई क्या जाने इस बात को, कि
हुआ बड़ा, खा कर जूठन थाली , दुःख दर्द ..................
सड़क चौराहे पर कचरा चुन कर
करता कोशिश भूख मारने का
न कोई हसरत न कोई सपना
अपना नही इस जग में कोई
मर गया हैं जब बचपन समाज में
सुन समाज कि भद्दी गाली , कुदरत ने जिसके ...........
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