रविवार, 20 जनवरी 2008

बचपन

थक कर चूर हो चूका अब बचपन
मल कर चाय कि प्याली
सुख को जिसने देखा नही
कुदरत ने जिसके किस्मत में
दुःख दर्द गम ही डाली

फुटा नसीब उस वक़त बचपन का
पैदा हुआ जब इस धरा पर
दूध भी नही मिल सका जिसको
कोई क्या जाने इस बात को, कि
हुआ बड़ा, खा कर जूठन थाली , दुःख दर्द ..................

सड़क चौराहे पर कचरा चुन कर
करता कोशिश भूख मारने का
न कोई हसरत न कोई सपना
अपना नही इस जग में कोई
मर गया हैं जब बचपन समाज में
सुन समाज कि भद्दी गाली , कुदरत ने जिसके ...........

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