मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

मन की कुछ बातें ....

दहक रही चिता चिंता का, आज अंत क्या होगा ?
पीड़ित मन तन थका हुआ, विश्रांत आज क्या होगा ?

जन्म- मृत्यु के बीच समय, सुख-दुःख से भरा पड़ा है।
कोई अधिक कोई थोडा भी, दुःख के पले में पड़ा है ॥

दुःख का समय दिखाता हमको, भले बुरे लोगों को।
सुख में लाभ बटोरन वाले, दुःख में हटने वालो को॥

देख लिया अब नही देखना, जग के ऐसे लोगो को।
माफ़ किया अपनी और से, ऐसे उनलोगों को॥

जो भी समय अब शेष बचा है, उसे सवारना अब है।
दुखी जन संतप्त लोगों का, दुःख हरने का मन है॥

नहीं दहकते रहना है अब, कृतघ्नो की करनी से ।
समय गवाना मुझे नही हैं, सोच उनकी करनी से॥

जैसी वेदना मुझे मिली है, दूसरा कभी न झेले।
प्रभु से है यह नम्र निवेदन, सब का दुःख वह लेले॥

सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

समय नही बताएँगे

ट्रेन में जाते समय
मैंने एक भाई साहेब से अचानक ही
समय पूछ लिया ...
क्या आप समय बताएँगे
उन्होंने कहा नही॥!
हमने कहा क्यों
उन्होंने कहा की अगर हमने आपका समय बताएँगे
तो आप बातों का सिलसिला आगे बढायेंगे
फ़िर आप पूछेंगे आप कहा रहते हैं
हम कहेंगे स्टेशन के पास
अरे! स्टेशन के पास तो हम भी रहते हैं।
इसी तरह आप एक दिन मेरे घर आयेंगे
हम शरमाते हुए आपको सोफे पर बैठाएंगे
और अपनी बेटी से चाय मंगवाएंगे
फ़िर आप मेरी बेटी को देखते ही fida हो जायेंगे
और एक दिन मेरे नही रहने पर मेरे घर आयेंगे
और मेरी बेटी को पटाकर भाग जायेंगे
समय बहुत ख़राब चल रहा है
इसलिए, आपको समय नही बताएँगे


हास्य कविता