बुधवार, 6 अगस्त 2008

सास के मायके सातो धाम

अभी हाल ही में मैं अपने ममेरी बहन के शादी में गया था। शादी में घर में चारो तरफ़ गहमागहमी थे। घर में औरतों का जमवाडा लगा था। मैं भी ब्यस्त था। घर के आंगन में औरतों का जो जमवाडा था उसमे अपनी सास के ऊपर चर्चा परिचर्चा छिड़ा हुआ था। अधिकंस्तः शादी शुदा महिलाएं अगर जमवाडा लगाती हैं तो अपने ससुराल के और सासु माँ के बारे में ही बात करती हैं। बात चित के क्रम में मैंने सुना की औरतों को अगर अपने सासु माँ के मायका यानि अपने पति के मामा गाँव जाकर उस घर का पानी पिने का मौका मिले तो पानी पिने मात्र से सारे धाम जाने के बराबर पुण्य मिलता हैं। गाँव की महिलाएं अन्धविश्वास और आस्था की केन्द्र होती ही हैं। ऐसा मानना सभी लोगों का हो सकता हैं। इसको अन्धविश्वास , धर्मान्धता या आस्था भी कह सकतें हैं। sas बहु के झगडे और सास बहु को लेकर जो अवाधारानाएं हैं वो तो जग जाहिर है लेकिन मुझे गर्व होता हैं अपने पूर्वजो पर जो इतने दुर्दारसी थे की क्या कहने। मैं उनके दूरदर्शिता को सलाम करता हू । वो अपनी दूरदर्शिता के बल पर इस तरह का एक कोसिस कर गयें जो सास बहु के बिच के झगडे को पाटने का महत्वपूर्ण कड़ी हैं ।

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

हमारे पूर्वज बहुत दूरदर्शी थे। उन्होने एक ही काम नहीं किया। हर क्षेत्र में ऐसी अनेकों प्रथाएं हैं , जिससे रिश्तों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है।

lumarshahabadi ने कहा…

vah sab,aapne to lupt hoti ja rahi bhojpuri sanskriti ko sab ke samne rakha,nice ,very nice