भोजपुरी के शेकश्पियर भिखारी ठाकुर
angaregi shashan में आरा का bishesh mahatav रहा है। जार्ज पंचम का जब आरा darbar हुआ था तो उनके लिए ramna maidan से sate एक charch का nirman karaya गया था ।
सन १८५७ में जब देश के सभी जगहों पर स्वंत्रता संग्राम का बिगुल फुका गया था तब बीर बकुडा बाबु कुंवर सिंह ने यही से नेतृत्व करके अंगरेजी हुकूमत के खिलाफ जंग का एलान किया। बाबु कुंवर सिंह आरा से २५ किलोमीटर पश्चिम जगदीश पुर के रहनेवाले थे। कहा जाता हैं की कुंवर सिंह ने आरा से जगदीशपुर सुरक्षित जाने के लिए एक सुरंग का निर्माण करवाया था। आज भी यह सुरंग मृत अवस्था में महाराजा कालेज में बिधामान है आरा का बाबु बाज़ार कुंवर सिंह के स्मृती का श्रेष्ट उधाहरण हैं। आरा के साहित्यिक गतिविधियों के क्या कहने? दिल्ली , इलाहबाद, काशी में भी यहाँ की तूती बोलती थी और हैं। यहाँ के कथाकार लेखक , साहित्यासृजक पहले और आज आपनी और अपनी इस भूमि की पहचान रास्ट्रीय स्तर पर बना चुनके हैं। यहाँ के साहित्यिक लाल शिव नन्दन सहाय , आचार्य शिव पूजन सहाय, राजा राधिकारमण , हवालदार त्रिपाठी , सकल देव नारायण शर्मा को कौन हिन्दी पाठक नहीं जनता होगा। भोजपुर लोक कथा और लोक गायन का एक प्रमुख केन्द्र रहा हैं। भोजपुरी के शेकश्पियर भिखारी ठाकुर को भोजपुरी भाषा- भाषी क्षेत्र का कौन नही जनता है। जिनकी रचना भोजपुरी भाइयों के नस-नस में बसी हुई हैं। बिदेशिया , गबरघिचोर बेटी-बचवा अनेक नाटको के मध्यम से जन जाग्रति फैलाने का काम किया हैं. महादेव सिंह को कौन भुला सकता है। जिन्होंने सोरठी ब्रिजभार , नयाकावा और लोरिकायन को रच कर भोजपुरी को नई दिशा दी हैं। महेंद्र मिशिर भोजपुरी पुरबी का एक अमर नाम हैं ।
पढ़ कर कृपया हौशलाअफजाई करें ........ कैसी रही ये आरा यानि भोजपुर के बारे में कुछ बिशेष .....