मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008

भिखारी ठाकुर का बिदेशिया

स्वर्गीय भिखारी ठाकुर


भिखारी ठाकुर का बिदेशिया एक ऐसा नाटक हैं जो उनके ज़माने में तो प्रासंगिक था ही आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय । भिखारी ठाकुर का यह नाटक एक उत्क्रृष्ट रचना हैं । पुराने जमाने में लोग उनके नाटक को भिखारिया का नाच कहतें थें । जब भी जहाँ भी उनका नाच होना रहता था लोगो को पूर्व में ही पता लग जाता था । पुराने लोग आज भी कहतें हैं कि २०-२० कोस से लोग भिखारिया का नाच देखने के लिये आते थें । पहले जब भिखारी ठाकुर थें तब शायद भिखारी ठाकुर लोगों के बहुत प्रिय थें शायद इसी लिये लोग उनको प्रेम से ''भिखारिया'' कहतें थें।

बिदेशिया नाटक में जो मुख्य पात्र जो हैं उन सभी का आपना २ महत्व हैं नाटक के चार मुख्य पात्रों में बिदेशी को श्री कृष्ण के जैसा, बिदेशी के पत्नी को राधिका के जैसा , वहीं सुन्दरी को कुबड़ी, और बटोही को धर्म के रूप में भिखारी ठाकुर ने स्थान दिया है।
इनका नाटक बिदेशिया का कथा कुछ इस तरह हैं , कि नाटक का नायक बिदेशी नया -२ शादी करता हैं और अपनी पत्नी को छोड़ कर कमाने के लिये बिदेश यानी कलकत्ता चला जाता हैं और वहीं पर दूसरी शादी कर लेता हैं और अपनी गाँव कि पत्नी को भूल जाता हैं ।
इधर उसकी पत्नी अपने पति के वियोग में इतना ब्याकुल हो जाती हैं कि पागल के जैसा हो जाती हैं सभी से सिर्फ अपनी पति को वापस लाने के लिये कहती हैं । नाटक में बटोही का प्रवेश होता हैं और बटोही तैयार हो जाता हैं कलकता जाने के लिये और बेदिशी को वापस लाने के लिये ।
बटोही कलकत्ता जाता हैं और बिदेशी का ध्यान गावों कि तरफ खीचने में सफल हो जाता हैं दूसरी पत्नी कलकत्ते वाली का ध्यान बँटा कर बिदेशी को वापस गाव भेज देता हैं खैर बात कुछ भी हो पर बिदेशिया नाटक दर्शको को बंधने में पूरी तरह सफल हो जाता हैं


एक नज़र प्यारी और प्रियाम्बरा पर

यूं तो नाटक के कई पहलू होतें हैं। लेकिन भिखारी ठाकुर के बिदेशिया में दीदी के द्वारा प्यारी का किरदार और उनकी अभिनय क्षमता पूरे नाटक में जो जान डाला हैं उसके बारे में कुछ भी कहना छोटी मुह बड़ी बात होगी। दीदी का वो रोना दर्शको को रुलाना वियोग विरह दर्द क्या कुछ नहीं था अभिनय में। दुनिया में कलाकारों की कमी नहीं हैं लेकिन आपनी अभिनय क्षमता का को दिखाने की बात होगी और कोई नाम चुनने की बात कहेगा तो मैं आपनी दीदी को ही अपना आदर्श मानूँगा। कायल हो गया हूँ दीदी के अभिनय का ।आज भी नाटक का सीडी देखता हूँ तो मन नहीं भरता हैं। बिदेशी के याद में रोना बिलखना हमेशा मेरे जेहन में वो तस्वीर घूमती रहती हैं। आज के नाटक में दीदी ने प्यारी केफिर से जिंदा कर दिया हैं दीदी का करिश्माई अभिनय ही हैं की गावों की प्यारी को आपने अन्दर बैठा कर नाटक के मध्यम स्व दर्शकों को रोने पर मजबूर कर दिया । पता नहीं क्यों पर मुझे लगता हैं की मैं दीदी और प्यारी को कभी नहीं भूल शकता हूँ ।

रोहित

शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

बिहारी होने का गर्व



अजीब निराली तेरी लीला,
दूर से क्यों देखता है मुझको



बिहारी होने का गर्व हर बिहारी को हैं । पिछले कुछ वर्षो के आकडे को छोड़ दिया जाये तो जिस तरह बिहारियों में आत्म विश्वास आया हैं वो काबिले तारीफ हैं । बिहार में विकास का स्तर जितनी तेजी से बढ़ा हैं , इस से लगता हैं कि वो दिन दूर नही जब बिहार देश के अगरनी राज्यों में गिना जाएगा । यादव राज के समाप्त होने के बाद सुशाशन जितने तेजी से बिहार को अर्श पर ला खड़ा किया हैं वो बिहारियों के लिये आत्म विश्वास बढ़ाने में काफी सहायक सिद्ध होगा। कहा भी जाता हैं कि आदि का अंत भी होता हैं और बिहार को जितना बदनाम होना था हो चूका हैं अब इसकी पहचान एक अलग तरह छवि के रुप में होगी ।